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पता नहीं तुम कौन हो। पता नहीं तुम कौन हो।।



तुम खिलखिलाती एक हँसी या सर्दियों की धूप हो,
तुम परियों का एक राग या चंचल हवा का रूप हो।। 
तुम पर्वतों के साये में बहती हुई पावन नदी,
या प्रेम के आलिंगन में गुज़री हुई पूरी सदी।



तुम झरने की झंकार से निकला हुआ संगीत हो,
या घनघोर वर्षा में मग्न कोई पंछियों का गीत हो।
तुम निशा से भयभीत नभ में प्राची की पहली किरण,
या चंचलता के अवस्य विखंडन से परे संत्रप्त मन।।



तुम कोलाहल से व्याकुल मन को आवश्यक एक मौन हो।
पता नहीं तुम कौन हो। पता नहीं तुम कौन हो।।

Kapil Kumar Shishodia

Kapil is currently working as a Senior Software Development Engineer. He loves reading and writing articles on various topics, including mental health, human psychology, personal growth, self improvement and current events.

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